(नागपत्री एक रहस्य-42)
स्वप्न एक सार्थक दुनिया भी है हर स्वप्न व ख्याल जो बार-बार हमारे जीवन में आए वह सामान्य नहीं हो सकता, ठिक हमारी ही दुनिया की तरह एक ऐसी भी दुनिया है जहां से हमारे विचार और हमारी खोई हुई यादें टकराकर वापस आती है, या संचित रूप में तब तक रहती है जब तक कि उसका मालिक खुद उन्हें दोबारा नहीं पुकारता या किसी गुरु कृपा से उन्हें पुनः ना लौटा दिया जाए।
कभी-कभी स्वप्न का संबंध हमारी पूर्वजन्म की स्मृति से होता है जो अक्सर डरावनी हो सकती है, लेकिन जब ईश्वरीय कृपा होती है, और शक्तियों का स्मरणीय स्फूटन हमारी कुंडली जागरण के कारण होता है, तब आने वाले सपने किसी विशेष कारण या संकेत होते है, ठीक उसी तरह तुम्हारे स्वप्न भी निरर्थक नहीं हो सकते।
लेकिन इस विषय में पूर्ण जानकारी होने के पश्चात भी मैं तुम्हें नहीं बता सकता, क्योंकि यह प्रकृति के नियमों के खिलाफ होगा ,
लेकिन हां, मैं तुम्हारी स्मृति को अवश्य जागृत कर सकता हूं, जो सुषुप्त अवस्था में उसके जागरण के पश्चात तुम में वह शक्ति और सामर्थ्य होगी, कि तुम आसानी से अपने हर प्रश्नों के हल खुद ही निकाल सकती हो, तब शायद मेरा पूर्ण परिचय भी तुम्हें प्राप्त हो जाएगा और शायद सफर सुखद और आसान लगे।
अब तुम अपना हाथ मेरे माथे पर रखकर कुछ समय के लिए आंखें बंद कर लो, जब तक कि खुद को इसी स्थान पर ना पाओ, आंखे मत खोलना चाहे जो हो कहकर कदम्भ वही लक्षणा के पास बैठ गया।
एक अश्व की बात मान लेना मतलब साफ था कि वह कोई समान्य नहीं है।
फिर लक्षणा के मन में उठने वाले सवालों का अंत तभी संभव है, जब उसे अपनी वास्तविक स्थिति का ज्ञान हो, और यह सोचकर वो कदम्भ के सिर पर हाथ रख, जहां एक सुंदर चमकता हुआ मणि नजर आ रहा था बैठ गए।
उसकी आंखें बंद करते ही कदम्भ ने आश्चर्यजनक रूप से नाग माता के स्मरण करने वाला मंत्र का उच्चारण किया, और जो मां मनसा कहते हुए एक लंबी श्वास लक्षणा की और छोडी ।
थोड़े समय के लिए लक्षणा को ऐसा लगा जैसे वह फूलों की भांति हल्की होकर आसमान में उछल गई हों, उसने अपने आपको पर्वत शिखर पर शिव आराधना करते देखा।
खुद को सखियों के मुंह से "रुकमणी" नाम पुकारते देखा। अपना बचपन, यौवन, आराधना और शरीर का त्यागना सब कुछ देखा, और उसी के साथ पूर्व जन्म में हासिल की हुई शक्तियों का स्मरण उसे होने लगा।
उसने देखा खुद की आत्मा को नागलोक में संरक्षित होना, अपने माता-पिता को मंदिर में जाते देखना, मां के द्वारा नाग माता से अपनी इच्छा प्रकट करना और उसकी आत्मा को आदेश दिए जाना , विशिष्ट उद्देश्य के लिए पुनर्जन्म लेने हेतु इस जन्म में बांसुरी की खोज, यक्षों का उद्धार, कौड़ी का खेल, सर्प से दोस्ती, इन सब कुछ के साथ बचपन में शिव आराधना के समय प्राप्त होने वाली शक्तियों की स्वीकृति के साथ नाग माता का विशेष आशीर्वाद और उनकी शक्तियां सब कुछ स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगी।
वह भली-भांति सब कुछ देख सकती थी कि एक शक्ति कुंज अश्व की सांसों के साथ उसके शरीर में प्रवेश कर रहा है, उसे पूर्व स्मरण हो आया कि कदम्भ कोई और नहीं पूर्व जन्म में उसी का प्यारा घोड़ा जिसे जिसे वह "नीलकमल" कहकर पुकारती थी, जिसने किसी कारणवश उसके शरीर त्यागने के बाद अपने आप को नागेश्वर में समर्पित कर दिया था और अपने आप को भक्ति में विलीन कर वह इस स्थिति को प्राप्त हुआ, और आज तक इंतजार कर रहा था लक्षणा का, और फिर उसने अपने आपको कदम्भ के समीप पाया।
अपने नीलकमल की पुनः प्राप्ति देख उसके सिर पर प्यार से हाथ घुमाते हुए पूर्व की रुकमणी अर्थात लक्षणा ने अपनी आंखें खोली और खुशी के साथ कदम्भ की पीठ पर जा बैठी, और कहने लगी मेरे नीलकलम (कदम्भ) मैं सब कुछ समझ गई, और मेरे जीवन का उद्देश्य भी मुझे साफ नजर आ रहा है, चलो अब सैर किया जाए।
आकाशगंगा से लेकर पाताल लोक की गहराई तक प्रकाश की गति से तेज होने के पश्चात तभी मेरे मन की गति से विचरण करो , कहते हुए वह उच्च स्वर में जय हो नागदेवियों कहकर अपना हाथ उसने हवा में लहराया, और कदम्भ अब समझ चुका था कि लक्षणा की वास्तविक शक्तियां यथार्थ में प्रकट हो चुंकि है, और उसे लेकर वह आकाश में ले चला गया।
आकाशगंगा के समीप जाकर उसने सबसे पहले अपने उस चमत्कारिक शंख का उपयोग किया, जो उसके पलक झपकते ही उसके हाथ में आ गया।
एक तेज शंख की ध्वनि के साथ लक्षणा ने आकाशगंगा में छिपे उस गुप्त द्वार को खोलने का आदेश दिया, और साथ ही साथ अपने उन कौड़ियों को याद किया जो पल भर में कहीं पर भी रास्ता बनाने में सक्षम थीं ।
कौड़ियों ने आकर उसे आगे चलते हुए रास्ता दिखाने का वचन दिया, लक्षणा अब अपनी पूर्ण शक्ति अवतार में थी,वह पूर्व स्मृति के कारण मंत्र उपचार के साथ उन अखंड द्वारा को खोलते जा रही थी, जिसकी जानकारी सारे ब्रह्मांड में उसके अलावा नाग कन्याओं को ही थी।
अनेकों द्वार खुलते और प्रवेश के पश्चात अपने आप बंद हो जाते, कौड़िया चमत्कारिक रुप से बंद दरवाजों के सामने जाकर रुक जाती, और जैसे ही लक्षणा के आदेश पर द्वार खुलते वे अगले द्वार की और बढ़ जाती।
कदम्भ को सिर्फ अनुसरण करना था, और लक्षणा का ध्यान मार्ग में रोकने वाली शक्तियों पर था, क्योंकि जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रही थी, वैसे ही सुरक्षा द्वार के कड़े पहरेदार जो बाध्य थे, किसी विशेष सुरक्षा के लिए मंत्र उपचार पूर्व होने पर समझने के पश्चात आगे जाने का रास्ता देते तो वहीं कुछ रुकावटें बन सामने आ खड़े होते।
लेकिन लक्षणा ने उसके लिए भी उन यक्षों का स्मरण उस दंड को प्रकट किया हुआ था, जो संसार की उन पंच शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती थी, और इसी कारण अब उसे रोक पाना संभव नहीं, वह जा पहुंची सभी द्वारों को पार कर उस कमलरूपी सागर के पास जो एकदम शांत था, बिना किसी हलचल के उसमें कुछ कमल डूबते फिर खिलकर पुनः प्रकट हो जाते।
वहां जाकर लक्षणा ने देखा उस स्वप्न की हकीकत को जो उसे अक्सर दिखाई देती थी, बिखरी हुई पत्रियां (पन्ने) कन्याओं का रूप लेती, सागर में विचरती और पुनः एक स्थान पर उस रस्सीनुमा नाग के कहने पर एकत्रित होती, जो उन्हें आपस में बांध देता और एक साथ प्रकाशमय होकर चमकने लगता और पुनः फिर उन्हें आजाद कर देता, उस सागर में विचरण के लिए यही स्वप्न तो लक्षणा ने देखा था।
क्रमशः.....